hindisamay head


अ+ अ-

कविता

यदि, प्रेम था तुम्हें

नीरजा हेमेंद्र


यदि, प्रेम था तुम्हें
समाजवाद से
तो तुम्हें कहाँ मिला था वह
कहाँ पर तुमने मित्रता कर ली थी उससे...
गलबँहियाँ डाल तुम कब चले थे
उसके साथ...
मैंने भी उसे ढूँढ़ने का
किया था प्रयत्न
गंदे नाले के
गीली मिट्टी पर बसी झुग्गी में...
फुटपाथ पर ठिठुरते
मजदूरों के झुंड में...
दो टूटे ईंट के बने चुल्हे पर
सुलगती गीली लकड़ी से
काले पड़ चुके बटुले में...
मुझे भी तो बताओ उसका पता
तुम कहो तो मैं उसे ढूँढ़ूँ
बहुमंजिली इमारतों में, मॉल्स में
या कि राजपथ पर
वह इस देश नहीं था... नहीं है...
कदाचित् नहीं रहेगा...
आयातित मित्रों के मध्य रहता है वह
तुम्हारे द्वारा बनाई जातिवादी... भाषावादी...
नस्लवादी... सीमाओं पर खड़ा वह
लगाता है अट्टहास
करता है परिहास
तुम्हारा समाजवाद
अपने मित्र फासीवाद से...


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नीरजा हेमेंद्र की रचनाएँ